बहती हवाओं में।

बहती हवाओं में।  

कहाँ पर है खड़ी दुनिया कहाँ हम आ के ठहरे हैं
क्यूँ लगता है कि अधरों पर बिठाए लाख पहरे हैं
दबी सी टीस उठती है हृदय के एक किनारे से
के खुल कर कह नहीं पाये मिले जो घाव गहरे हैं।।

के वादों में उलझती जिंदगी फरियाद करती है
इरादे नेक हो यदि वीराना आबाद करती है
मगर कथनी और करनी में जहाँ पर फर्क होता है
वहाँ जितनी भी दुनिया है महज बरबाद होती है।।

हमारा देश ये भारत नहीं कोई धर्मशाला है
के दे कर लाख कुर्बानी इसे सदियों ने पाला है
ये सुन लें आज दुश्मन सब लगाए घात बैठे जो
के लम्हों के इरादों ने बदल इतिहास डाला है।।

नहीं है धर्म क्यूँ कोई नहीं कोई निशानी है
दिलों में नेह जो भर दे नहीं ऐसी कहानी है
क्यूँ वोटों के लिए बस खेलते देखा हवाओं को
अंधेरों ने दिलों में क्यूँ बसाई राजधानी है।।

कब ठहरी रोशनी बोलो कहीं गहरी घटाओं से
कब ठहरी धार नदिया की बही उलटी हवाओं से
बनेंगी राहें तब खुद ही इरादे नेक जब होंगे
सजेगी फिर नई दुनिया इन्हीं बहती हवाओं में।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17नवंबर, 2022




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