अदावत।
के कुछ भी कह सके न जब कहो अधिकार क्या कोई
टूटी हैं कई कड़ियाँ क्यूँ इस राह में चलकर
महज जब नेह जिस्मों से कहो आधार क्या कोई।।
नहीं मजहब कहीं इसका नहीं कोई रवायत है
कि इसके रूप से हमको नहीं कोई शिकायत है
मगर जो खेल खेले आड़ में वहशी दरिंदों ने
मुझे उस खेल के अंजाम से गहरी अदावत है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16नवंबर, 2022
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