समय संग रीत जाता है।

समय संग रीत जाता है।

न समझो राह का पत्थर मैं वही रस्ता पुराना हूँ
जो तुम हो गीत की दुनिया तो मैं भी इक फसाना हूँ
नहीं कोई अदावत है मुझे तुम्हारे जमाने से
जो तुम हो आज की दुनिया तो मैं गुजरा जमाना हूँ।।

जहाँ तुम आज पहुँचे हो उसे हमने ही बनाया है
हटा कर के राह से काँटे नया रस्ता बनाया है
नहीं थी मखमली राहें चुभे कितने शूल पैरों में
औ कितनी ठोकरें खाईं तब जाकर पथ सजाया है।।

नया क्या सूर्य है देखा औ नया कब चंद्रमा देखा
सुना है क्या कभी तुमने नया कोई आसमां देखा
पुराने हैं सितारे ये औ वही रातें पुरानी है
सिवा धरती के आँचल के कोई क्या आसना देखा।।

नया तब दौर आता है जब पुराना बीत जाता है
है समय का खेल कुछ ऐसा समय ही जीत जाता है
कहाँ ठहरी हैं ये राहें उमर संग बीत जाती हैं
भरो सागर से घट कितना समय संग रीत जाता है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13नवंबर, 2022

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