अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

बावले कुछ गीत मन में चुभ गये
नैन थे बेचैन कुछ-कुछ कह गये
कुछ कपोलों पर गिरे कुछ मौन थे
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

मौन, कितनी व्यथा का भार ढोते
शब्द के घाव का व्यवहार ढोते
हैं कलेजे पर चुभे तीर कितने
कह न पाये, मौन हर बार रोते
दर्द थे जितने सभी चुप सह गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

अश्रुओं में भींगते मन हारते
देखा है कितने जीवन वारते
जीत के द्वार पे जितने खड़े थे
देखा कितनों को उनमें हारते
हार कर बात दिल जो कह न पाये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

अंक में जो भाव हैं जो है कसक
छोड़ता है मन कहाँ कोई कसर
कंठ में जो शब्द की अब तक तपन
देखा है मन पे सदियों ने असर
कंठ में जो शब्द दब कर रह गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

क्या नहीं इस अश्रु ने अब तक किया
मौन रह कर बात कितनी कह दिया
किंतु जाने रेख में क्या था यहाँ
आँसुओं ने दर्द को पल-पल सिया
सी न पाए दर्द जो सब बह गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

भाग्य में जिनके व्यथा लिपटी रही
दर्द से उनका सदा नाता रहा
थी अभागे शब्द की कुछ तो व्यथा
आँसुओं में भींगता गाता रहा
शब्द कितने मौन झर-झर बह गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

मौन पलकों में कभी आ जब कढ़े
था भला यदि टूट गिर जाते वहीं
जब न कोई दिल पसीजा क्या कहें
टूट कर यूँ ही बिखर जाते कहीं
छूट पलकों से अकेले रह गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

बह चले जो शब्द दुखिया आँख से
इस जगत ने बस उसे पानी कहा
फिर जगत की लाज क्यूँ पलकें करें
जब किसी ने भी नहीं आँसू कहा
बूँद माटी में मिले गुम हो गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये। 

क्या कहें क्या बेबसी इनकी रही
साँस से कैसा सदा नाता रहा
जब कपोलों पर लुढ़क कर आ गिरे
नैन से क्यूँ नेह भी जाता रहा
सूख कर के भी हृदय में छप गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

मौन लम्हों ने कई सदियाँ लिखी
मोड़ कितने और क्या गलियाँ लिखीं
उम्र भी जिस मोड़ पर आ थक गई
उस मोड़ पर आखिरी दुनिया लिखी
काँप कर के शब्द जिस पल दह गये
अश्रु पलकों के बहुत कुछ कह गये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10नवंबर, 2022









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