कितने प्रश्न रुके अधरों पर आधार यहाँ मालूम नहीं।।


कितने प्रश्न रुके अधरों पर आधार यहाँ मालूम नहीं।।

घने अँधेरे गलियारों में छोटा सा इक द्वार तलाशो
अंतरतम आह्लादित कर दे ऐसा कुछ उपकार तलाशो
निपट दूसरों की आहों में अपने गीत नहीं सुनना
दूजे के गीतों में भी अपने कुछ व्यवहार तलाशो।।

गीतों में जो मिला यहाँ उपहार कहो मालूम नहीं
कितने प्रश्न रुके अधरों पर आधार यहाँ मालूम नहीं।।

अनुरोधों औ अनुदानों के मध्य झूलता जीवन सारा
जीवन की बाजी में जीवन कितना जीता कितना हारा
अवसादों के गायन में बस व्यर्थ नहीं ये जीवन करना
बहता पानी मीठा होता रुका यहाँ जो होता खारा।।

पानी सम जीवन का है क्या व्यवहार यहाँ मालूम नहीं
कितने प्रश्न रुके अधरों पर आधार यहाँ मालूम नहीं।।

कद ऊँचा या पद ऊँचा हो समय सभी का न्याय किया है
अनुकंपा कब किया किसी पर कब बोलो अन्याय किया है
रुकी यहाँ लहरें नदिया की औ बंद हुए जब मार्ग कभी
दूर किनारे के कोरों से आशा का संचार किया है।।

आशाओं से जो पाया क्या आकार यहाँ मालूम नहीं
क्यूँ कर प्रश्न रुके अधरों पर आधार यहाँ मालूम नहीं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03अक्टूबर, 2022

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