कितनी घड़ियाँ बीत गईं
इक दूजे के भाव समझते
कितनी कड़ियाँ छूट गईं
इक दूजे का राग समझते
इक युग बीत गया हमको
इक दूजे को गीत सुनाते
इक युग बीत गया हमको
इस ड्योढ़ी तक आते जाते।।
राह भटकने से पहले गीतों का संसार सँभालो
राग बिखरने से पहले प्रिय वीणा के तार सँभालो।।
मन के भाव कहे हर कोई
इतना तो अधिकार सभी का
मन के भाव समझ पायें
इतना हो सत्कार सभी का
सबकी रेखों ने कब पाया
दुनिया का अनमोल खजाना
किंतु समय का मर्म समझना
हाय, न अब तक सबने जाना।।
समय छिटकने से पहले आहों का व्यवहार सँभालो
राग बिखरने से पहले प्रिय वीणा के तार सँभालो।।
मोल विजय का क्या बोलो
जीत माथ जब चढ़ कर बोले
हारा पर वो जीत गया
जिसने मन के भाव झिंझोड़े
जीत कभी जो कहा नहीं
हार बात वो कह जाती है
आवाजें जो कही नहीं
मौन हृदय के कह जाती है।।
हार-जीत के निस पल में रिश्तों का आधार सँभालो
राग उतरने से पहले प्रिय वीणा के तार सँभालो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29अक्टूबर, 2022
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