पास तेरे आ चुका हूँ दूर अब जाना नहीं है।।

पास तेरे आ चुका हूँ दूर अब जाना नहीं है।।

बाँध मुझको आज अपने नेह के नव बंधनों में
पास तेरे आ चुका हूँ दूर अब जाना नहीं है।।

रोक मुझको न सकीं संसार की घातें कोई भी
बाँध मुझको न सकीं अवसाद की रातें कोई भी
माना मेरे पथ में केवल कंटकों के जाल थे
जंजीर थी इक पाँव में औ अंक में जंजाल थे
दूर आया हूँ सभी से लौट अब जाना नहीं है
पास तेरे आ चुका हूँ दूर अब जाना नहीं है।।

धूल के कुछ कण उड़े जो शीश पर मेरे गिरे थे
सिलवटें कभी मिट सकी न भाल पर ऐसे सटे थे
किंतु मेरी भावनाओं ने मुझे बाँधा यहाँ पर
थे भरे जब नैन मेरे दोष था आधा वहाँ पर
बहुत बिखर का दर्द पाया और अब पाना नहीं है
पास तेरे आ चुका हूँ दूर अब जाना नहीं है।।

मुक्त हूँ सब बंधनों से मुक्त आहों के सफर से
मुक्त हैं अब सब किनारे मुक्त सागर की लहर से
आज मन की रागिनी निर्बाध निर्झर बह रही है
संग पा कर के मधुर सब भाव मन के कह रही है
कह रही है चाह मन की और अब पाना नहीं है
पास तेरे आ चुका हूँ दूर अब जाना नहीं है।।


©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27अक्टूबर, 2022

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