कम रातों ने भी दिया नहीं।।
नभ के सारे पंछी थककर
तरुवर को अपने लौट रहे
सागर में बलखाती नौका
फिर तटबंधों को ओर चले
पश्चिम की गोदी में जाकर
थक कर किरणें कहीं छुप रहीं
दबे पाँव संध्या भी आकर
रातों को आवाज दे रहीं
कितना कुछ दिन ने ढोया है
उफ्फ तक लेकिन किया नहीं।।
दिन के कितने काम अधूरे
चाहे लेकिन कर ना पाये
अधरों तक कितनी ही बातें
आईं लेकिन कह ना पाये
पलकों ने था किया इशारा
औ साँसों ने स्वीकार किया
पर कुछ बातें रहीं अधूरी
आ रातों ने सत्कार किया
मन से मन की डोरी बाँधी
नव सपनों को पर दिया यहीं।।
रवि का रजनी से आलिंगन
संध्या साक्षी स्नेह मिलन का
उपवन का हर कोना महका
ऐसे बहका झोंक पवन का
आज प्रतीक्षा में यादों ने
फिर से मन का दीप जलाया
आलिंगन में पिय को पाकर
पपिहे ने मधुमास जगाया
दिन का चाहे ताप गहन था
रातों ने उफ्फ किया नहीं।।
दिन ने माना दिया बहुत कुछ
कम रातों ने भी दिया नहीं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26अक्टूबर, 2022
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