देख खुशियाँ आ रही हैं।

देख खुशियाँ आ रही हैं।  

दीप की जगमग लताओं ने कुहासों को मिटाया
रात की गुमनामियों से देख पर्दा है उठाया
आज खुशियाँ स्वयं चल कर द्वार देखो आ रही है
और चादर जो तिमिर की दूर देखो जा रही है
दीप आशा के जगे हैं जिंदगी भी गा रही है
देख खुशियाँ आ रही हैं।।

रोशनी से जगमगाया औ गेह वंदनवार से
झूम कर दिल मिल रहे हैं इस दीप के त्यौहार में
आज आशा की किरण भी देख नर्तन कर रही है
और ये बहती हवायें आस नूतन भर रही हैं
दीप की लड़ियों में सजकर रात मुस्कुरा रही है
देख खुशियाँ आ रही हैं।।

आज हम भूलें दिवस के ताप थे जो भी हठीले
आज मिलकर गुनगुनाएं राग जीवन के सुरीले
अवसादों के अंधेरे अब आज सारे त्याग दो
वीथियों पे नेह लिख दो औ गात को नव साज दो
गात का श्रृंगार करने की घड़ी अब आ रही है
देख खुशियाँ आ रही है।।

भाव को चंदन करें हम थाल पूजा के सजाएँ
आंजुरी में आस भरकर नेह से हम पथ सजाएँ
जब मिलेंगे दिल सभी के गीत अधर ये गाएंगे
प्रेम को आशय मिलेगा देव धरा पर आएंगे
रात का श्रृंगार करने दीपमाला छा रही है
देख खुशियाँ आ रही हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अक्टूबर, 2022

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