जब बिछड़ना है हमें कहो कैसे मन के तार बाँधूं।।

जब बिछड़ना है हमें कहो कैसे मन के तार बाँधूं।।

सत्य हो या कल्पना हो या फिर कोई अभ्यर्थना हो
स्वप्न हो माधुर्य कोई भावों की अभिव्यंजना हो
व्यर्थ आशाएं सभी कहो मन से क्यूँ कर रार ठानूं
जब बिछड़ना है हमें कहो कैसे मन के तार बाँधूं।।

आज रोना व्यर्थ होगा आँसुओं का कुछ न अर्थ होगा
जब बूँद माटी में मिलेगी चाँदनी पल-पल जलेगी
जब चाँदनी अपनी नहीं फिर क्यूँ कहो श्रृंगार साजूं
जब बिछड़ना है हमें कहो कैसे मन के तार बाँधूं।।

आएगा मधुमास फिर से, फिर से पपीहे गायेंगे
चाहे तुम जितना पुकारो पर हम नहीं फिर आएंगे
गीत ही जब ना रहेंगे कैसे कहो नव राग साजूं
जब बिछड़ना है हमें कहो कैसे मन के तार बाँधूं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21अक्टूबर, 2022

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