सोचते ही रह गये।

सोचते ही रह गये।   

कल्पना के पृष्ठ अंकित नेह की कुछ पंक्तियाँ
गीत का अधिकार पायें सोचते ही रह गये।।

प्रश्न लाखों उठ रहे नेह की संवेदना पर
उँगलियाँ भी उठ रही गेह की अवचेतना पर
हैं दिलासे लाख लेकिन पास सम्मुख कुछ नहीं
दूर तक इन वीथियों पे दीखता भी कुछ नहीं
मौन सब संवेदनाएँ वीथियों में ढह गये
गीत का अधिकार पायें सोचते ही रह गये।।

चाहतें हर पल रही दूर हैं जो पास आएं
जो कभी बिछड़े सफर में साथ मिल गुनगुनाएं
सोचता हर पल यही दिल आज उसको क्या मिला
क्यूँ नहीं टूटा अभी तक हादसों का सिलसिला
हादसों के सब निशाँ वो साँस में ही घुल गये
गीत का अधिकार पायें सोचते ही रह गये।।

हूक कभी उठी हृदय में कंठ में ही रुक गयी
नैन बरबस भींग कर के क्या कहे बस झुक गये
आज जाना हर कहानी ढूँढती है छाँव क्यूँ
और पगडंडी अकेली ढूँढती है गाँव क्यूँ
छाँव की मारीचिका में स्वप्न सारे ढह गये
गीत का अधिकार पायें सोचते ही रह गये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       20अक्टूबर, 2022

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