अंक में बस प्यार लिखना।
रात कितनी भी घनेरी अंक में बस प्यार लिखना।।
इस हृदय से उस हृदय का मेल माना के कठिन है
पास से गुजरो कभी तो पंथ का विस्तार लिखना।।
भूल हो चाहे जिधर की या दर्द की स्मृतियाँ पुरानी
भाव कुछ भी हो हृदय में आस का संसार लिखना।।
रूठ कर जो जा रहे हैं आज जीवन के सफर में
लौट कर आओ कभी तो नेह का अधिकार लिखना।।
रात माना है घनेरी कुछ नहीं जब दिख रहा हो
खोल पलकों के किनारे इक नया भिनसार लिखना।।
कौन कहता बादलों को दर्द कभी होता नहीं है
बूँद छूटी बादलों से टूटता अधिकार लिखना।।
उम्र कब ठहरी है बोलो "देव" सदियों के सफर में
मौन लम्हों में, पलों में स्नेह का विस्तार लिखना।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
हैदराबाद
19अक्टूबर, 2022
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