बहुत सुनी हमने गीतों में
अनुरागों की मधुर कहानी
बहुत सुनी है जग से हमने
प्यार मुहब्बत और जवानी
मैं काश पलों के भावों को अपने गीतों में गा पाता
काश समय की बहती धारा मैं मोड़ उधर ले आ पाता।।
नाजुक लम्हों में जीवन का
भूले से पल वो बिछड़ गया
बसने से पहले सपनों का
पलकों से रिश्ता उजड़ गया
काश स्वप्न के बिखरे पल को मैं नयनों में फिर ला पाता
काश समय की बहती धारा मैं मोड़ उधर ले आ पाता।।
कुछ अश्रु तुम्हारे पलकों में
कुछ मेरी पलकों में आये
संध्या के उन मौन पलों ने
जाने तुमको क्या दिखलाये
काश नयन की निज पीड़ा को मैं तुमको फिर बतला पाता
काश समय की बहती धारा मैं मोड़ उधर ले आ पाता।।
सूरज मौन क्षितिज में जाकर
जब सागर तल में डूब गया
सांध्य सिमटती रही अकेली
तब अंजुलि से पल छूट गया
बिखरे पल की उस पीड़ा का मैं घाव अगर दिखला पाता
काश समय की बहती धारा मैं मोड़ उधर ले आ पाता।।
गात खंडहर वीराना सा
मन में लेकिन शोर उठ रहा
रात उनींदी पलकों में क्यूँ
पल-पल कोई कोर चुभ रहा
काश हाथ से छूटे पल से मैं पलकों को नहला पाता
काश समय की बहती धारा मैं मोड़ उधर ले आ पाता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17अक्टूबर, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें