चंचल नदिया लहराने दो।।

चंचल नदिया लहराने दो।।

मुक्त धरा उन्मुक्त गगन है
मुक्त भाव उन्मुक्त पवन है
मुक्त नयन में मौन सपन है
फिर क्यूँ ऐसी आज तपन है
मन भावों को महकाने दो
चंचल नदिया लहराने दो।।

कौन लहर का कहाँ किनारा
कहती कब नदिया की धारा
दूर क्षितिज पर तटबंधों का
कहो यहाँ है कौन सहारा
पल-पल ये बलखाती नदिया
विकल समंदर को पाने को।।

संध्या के इन मौन पलों में
कितना कुछ तुमसे कहने को
जो तुम मेरे पास नहीं हो
यादों को कुछ पल रहने दो
यादों के मानसरोवर में
मेरे मन को खो जाने दो।।

माना पथ में रात हुई है
दूर भोर किरणों की नगरी
अब भी पनघट की राहों पर
भोर खड़ी सर पर ले गगरी
दो बूँद प्यार की गागर के
मेरे अधरों को पाने दो।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       16अक्टूबर, 2022


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...