दूर कहीं तेरा साहिल।
उलझ-उलझ कर भटका मन
बीते मंजर उमड़ रहे हैं
पलकों में आँसू बन-बन
बोझ अश्रु का कौन सँभाले
नयनों में आते पल-पल
कौन यहाँ जो तुझे पुकारे
दूर कहीं तेरा साहिल।।
पीछे मुड़ कर देख रहा क्या
तुझको कौन पुकारेगा
राहों में जो ठोकर खायी
आकर कौन सँभालेगा
छोटे से इस जीवन मे है
कितनी बड़ी-बड़ी हलचल
कौन यहाँ जो तुझे पुकारे
दूर कहीं तेरा साहिल।।
तुझ पर जो आरोप लगे हैं
उसी आग में जलता जा
अपनी लाश उठा काँधे पे
यहाँ अकेला चलता जा
आहों के उस पार निकल जा
यहाँ नहीं तेरी मंजिल
कौन यहाँ जो तुझे पुकारे
दूर कहीं तेरा साहिल।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
05सितंबर, 2022
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