पावस की पुरवाई लेकर आई याद तुम्हारी।।
मन के नील गगन को शोभित करती ज्यूँ रंगोली
सुरभित भाव हुए अंतस के छवि देखी तब न्यारी
पावस की पुरवाई लेकर आई याद तुम्हारी।।
कुसमित हैं सब अंग-अंग अधरों ने बंधन खोला
पुण्य प्रेम की पावनता से पपिहे का मन डोला
सुधियों के पथ चलकर आयी साँसों में फुलवारी
पावस की पुरवाई लेकर आई याद तुम्हारी।।
अंतस में भावों की हलचल आशाएँ पुलकित पल-पल
सुधियों को राह सुझाती मिलन विकल मन की हलचल
साँसों में मुखरित हो जैसे गीतायन की क्यारी
पावस की पुरवाई लेकर आई याद तुम्हारी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04सितंबर, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें