उर के शांत सरोवर में फिर छेड़ो वीणा की तान मधुर।।

उर के शांत सरोवर में फिर छेड़ो वीणा की तान मधुर।।


मन उपवन की कुंज गली में पिय आओ आकर मिल जाओ
उर के शांत सरोवर में फिर छेड़ो वीणा की तान मधुर।।

इच्छाएँ फिर पर फैला कर मन को दूर कहीं ले जाती
सपने पलकों पर छाते हैं आशाएँ मृदु गीत सुनाती
कह लें मन की सारी बातें आ अंतस में यूँ मिल जाओ
साँसों की सरगम को छू लो फिर  मन हो जाये नवल मुकुल
उर के शांत सरोवर में फिर छेड़ो वीणा की तान मधुर।।

मन मृदु स्पर्श तुम्हारा पाकर पल-पल यूँ स्वप्न सँजोता है
बरखा की प्यासी धरती को जैसे मधु मेघ भिंगोता है
छू ले अंतस के भावों को अंतर्मन में यूँ घुल जाओ
उर से उर का संगम हो यूँ अधरों पर हो नव गान मधुर
उर के शांत सरोवर में फिर छेड़ो वीणा की तान मधुर।।

जिस सुख की मन करे प्रतीक्षा उसको तकता रहता प्रतिपल
निज मन की है यही कामना फैलाता कर नव दल हरपल
आशा के नव अंकुर फूटे यूँ सम्मुख आकर मिल जाओ
मिल जाये जीवन से जीवन इच्छाओं का सम्मान मधुर
उर के शांत सरोवर में फिर छेड़ो वीणा की तान मधुर।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20जुलाई, 2022

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