सुधियों के दो पल कागज पे लिखता हूँ मुस्काता हूँ।।

सुधियों के दो पल कागज पे लिखता हूँ मुस्काता हूँ।।

यादों के मानसरोवर पे कितने बादल मँडराये
कुछ बरसे हैं आँसू बनकर कुछ भावों में गहराये
अंतस में घिरते बादल को गीतों से मैं बहलाता हूँ
सुधियों के दो पल कागज पे लिखता हूँ मुस्काता हूँ।।

लहरों की बहती धारा में दूर किनारे तक जाऊँ
चाहे मुझको छोड़ चले सब मैं तो सबको अपनाऊँ
अपने और पराये का कभी भेद समझ न पाता हूँ
सुधियों के दो पल कागज पे लिखता हूँ मुस्काता हूँ।।

नहीं दूर तक जाना मुझको नहीं चाहता सब पा लूँ
इस छोटे से जीवन के जो गीत चुनूँ उसको गा लूँ
गीतों में मन के भावों को छूता हूँ सहलाता हूँ
सुधियों के दो पल कागज पे लिखता हूँ मुस्काता हूँ।।

बहुत कर लिया मन की बातें अब कोई अधिकार नहीं
झंझाओं में उलझे मन से अब कोई प्रतिकार नहीं
खुद से ही बातें करता हूँ खुद को ही बहलाता हूँ
सुधियों के दो पल कागज पे लिखता हूँ मुस्काता हूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       20जुलाई, 2022

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