है प्रणय की प्यास गहरी प्रीत से आँगन सँवारो।।
है प्रणय की प्यास गहरी प्रीत से आँगन सँवारो।।
मैं हृदय में पुण्यता भर प्रीत का विश्वास पालूँ
दग्ध भावों को सँभालूँ मन के सारे दाह धो लूँ
आज खोलूँ बंधनों को मोह को अनुरंजनों को
नैन भर तुमको निहारूँ श्वास में अहसास पा लूँ।।
श्वास में संगीत भर लो साज को फिर से उतारो
है प्रणय की प्यास गहरी प्रीत से आँगन सँवारो।।
इन कपोलों पर बिखरती ये नेह की कुछ बदलियाँ
बूँद जल की हैं चमकती जैसे मेह की हों तितलियाँ
अधरों से मधुरस छलकते नयनों से है चाँदनी
जैसे पुलकित हो थिरकती साजों पर ये उँगलियाँ।।
गात का कण-कण पुकारे आ मुझे फिर से निखारो
है प्रणय की प्यास गहरी प्रीत से आँगन सँवारो।।
उर निलय के भाव सुरभित प्रेम का आसक्त गहना
स्वप्न की मृदु पाँखुरी को फिर नयन में आज पढ़ना
राग गुंजित हो पवन में खिल उठे मधुमास फिर से
नख से शिख तक राग मधुरिम साजों में आज गढ़ना।।
निज निशा से भोर तक फिर चाँद धरती पर उतारो
है प्रणय की प्यास गहरी प्रीत से आँगन सँवारो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08जुलाई, 2022
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