मूल्य मुखर कब हो पाते हैं।।
जीवन इतना सरल रहा कब
के कोई सब कुछ लिख डाले
पल-पल यहाँ बदलते देखा
जगती ने किस्मत को पाले।।
इस पाले से उस पाले तक
सफर अधूरे रह जाते है
कुछ शब्दों में जीवन भर के
मूल्य मुखर कब हो पाते हैं।।
हाँ, सही कहा जो कहा नहीं
गलती पर, लेकिन झुका नहीं
जग ने तो बस शब्द चुने इक
पर, रुक कर कुछ भी सुना नहीं।।
खुद ही कथ्य बनाने वाले
हो प्रखर सत्य कब सुन पाते हैं
कुछ शब्दों में जीवन भर के
मूल्य मुखर कब हो पाते हैं।।
क्षण भर को बादल छाने से
कब सूर्य छुपा जो यहाँ छुपेगा
बाधाएँ कितना पथ रोकें
पुण्य पथिक जो, निडर चलेगा।।
निज संबंधों की बेदी पर
बर्फ कहो कब टिक पाते हैं
कुछ शब्दों में जीवन भर के
मूल्य मुखर कब हो पाते हैं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11जून, 2022
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