मेरे साथ देखो ये राहें चली हैं।।
सफर में अकेला नहीं मैं मुसाफिर
मेरे साथ देखो ये राहें चली हैं।।
भोर से साँझ तक बस तपन ही तपन थी
मगर आस में एक मीठी छुअन थी
वो मीठी छुअन से हुआ भाव पावन
कि मरुधर में लहराया है आज सावन।।
ये पावस की रातें मुखर हो चली हैं
मेरे साथ देखो ये राहें चली हैं।।✅
हवाओं के झोंकों ने है राग छेड़ा
कलियों ने हंँसकर के अनुराग छेड़ा
सजने लगी जिंदगी बन सयानी
लिखी आज मौसम ने नूतन कहानी।।
कहानी सुनों आज भी मनचली है
मेरे साथ देखो ये राहें चली हैं।।
कैसे अकेला चला इस सफर में
यादों की बदली है छायी डगर में
वो भीनी सी खुशबू महकती कहीं हो
है मालूम संग-संग मेरे तुम यहीं हो।।
कि यादों में मेरे घुली जिंदगी है
मेरे साथ देखो ये राहें चली हैं।।
©✍️ अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06जुलाई, 2022
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