छाँव।
जन्म लेती भावनायें एक सी हरपल यहाँ
एक ही जीवन यहाँ पर एक ही है पालना
एक सा सींचा यहाँ क्यूँ द्वेष मन में मानना।।
नेह बरसाया गगन ने एक सा सब पर यहाँ
और धरती ने बिछाई है पुष्प की चादर यहॉं
कैसे फिर अंतर यहाँ मन में कोई पालता
जब एक सी ही चाँदनी चाँद सब पर डालता।।
जन्म के क्षण में जीवन बोलो कब है सोचता
लड़ के मृत्यु से यहाँ वो सत्य को है पोसता
काँटे चुन आँचल में वो पुष्प पथ पर डालती
लड़ती प्रकृति से यहाँ वो ऐसे हमें पालती।।
उम्र भर प्रतिपल बरसता नेह उसका शीश पर
छोड़ती है कब यहाँ वो प्रीत की कोई कसर
देव उसके त्याग को संसार ऐसे पूजता
ताउम्र उसकी छाँव को देवता भी खोजता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18जुलाई, 2022
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