मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
खुद ही खुद से कर लेता हूँ
मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
छंदों की पहचान नहीं है
मात्राओं का भार न जानूँ
गजलों, दोहों, चौपाई की
मैं कोई पहचान न जानूँ
दग्ध हृदय में उमड़ रहे सब
भावों को मैं सह लेता हूँ
मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
व्याकुलता के पल में कितने
मन में बहती हैं धाराएं
पीड़ा के निस क्षण में मन ने
रच डाली कितनी रचनायें
रचनाओं के इर्द-गिर्द में
डूबा खुद में रह लेता हूँ
मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
जगती के सब ताने सारे
बन शब्द तड़पने लगते हैं
पीड़ित मन जब कह ना पाये
मन बूँदों में कहने लगते हैं
उन बूँदों के दर्द सभी वो
पलकों में ही सह लेता हूँ
मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
कंटक में उलझे मन लेकिन
श्रृंगार सृष्टि का करना चाहे
अवसादों में भले घिरा हो
सत्कार सुरभि से करना चाहे
काँटे मन में भले चुभे हों
हँसते-हँसते सह लेता हूँ
मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
शब्द बाण से मन हो घायल
चाहा जब प्रतिकार किया
अपने हों या भले पराये
मन ने सबका सत्कार किया
प्रतिकारों के दोष सभी तब
मन में लेकर रह लेता हूँ
मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
पग-पग कितने आरोपों में
ये जीवन उलझा जाता है
पग-पग कितना गरल पिया है
फिर भी न सुलझ ये पाता है
अनसुलझे सारे प्रश्नों को
पलकों में ही दह लेता हूँ
मन जो बात नहीं कह पाता
कविताओं में कह लेता हूँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14जुलाई, 2022
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