लिख सके न हम मन की बातें।
तुमने बोलो कैसे पढ़ डाला।।
जो बातें कभी निकली ही नहीं
तुमने बोलो कैसे सुन डाला।।
इक बात पकड़ कर जो बैठे हो
मन ही मन में क्या-क्या रच डाला।।
तुम शोषित हो हम शोषक माना
सोचो, तुमने क्या-क्या कह डाला।।
तुम मन तक कभी पहुँच कब पाये
कहते हो मेरा मन पढ़ डाला।।
कुछ शब्द गिराये होंगे हम सब
वक्त यूँ ही नहीं सब कढ़ डाला।।
क्या दोष यही है मेरा बोलो
बातें तेरी तुमसे कह डाला।।
अब ये नजर की बातें हैं "देव"
जिसने यहाँ रिश्ता बदल डाला।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13जुलाई, 2022
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