आस का दीपक जलाये द्वारे पर ठहरा हूँ मैं।।
आस का दीपक जलाये द्वारे पर ठहरा हूँ मैं।।
छुप रही हैं रश्मियाँ भी दूर देखो अब क्षितिज पे
छा रही हैं बदलियाँ भी मौन भावों के हरिज पे
पक्षी भी अब उड़ चले हैं आसरे की ओर देखो
और सूरज लिख रहा कुछ शब्द पृष्ठों पर जलज के।।
सांध्य से कुछ पल चुराकर नैन में कुछ स्वप्न भरकर
आस का दीपक जलाये द्वारे पर ठहरा हूँ मैं।।
चिमनियों से सांध्य चूल्हे लिख रहे नूतन कहानी
सूर्य की अंतिम किरण भी कर रही पल को सुहानी
धूम्र भी कुछ गढ़ रहे हैं बादलों में तूलिका से
देख फिर खिलने लगी है भाव में अब रातरानी।।
दृष्टि का विस्तार करके प्रेम अंगीकार कर के
आस का दीपक जलाये द्वारे पर ठहरा हूँ मैं।।
द्वार पर आकर पुकारा रात का पहला सितारा
चाँदनी भी खिल उठी है देखकर सुंदर नजारा
जुगनुओं ने छेड़ दी चौपाल पर फिर इक कहानी
तेज होती धड़कनें सुन कर रहीं हमको इशारा।।
अंग का विन्यास करके पाश में मधुमास भरकर
आस का दीपक जलाये द्वारे पर ठहरा हूँ मैं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12जुलाई, 2022
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