घाव की कुछ पंक्तियाँ ले
भाव में कुछ बदलियाँ ले
भर नीर का सागर नयन
औ वेदना आयी शरण
तब लिखे कुछ गीत मन ने
भरे दर्द का सारा जहाँ
कवि होना आसान कहाँ।।
निज पृष्ठ पर परिणाम देकर
निज आस को विश्राम देकर
भर शब्द के पग-पग सुमन
कर मौन मन के मृदु नयन
जब सजे श्रृंगार मन के
तब लिखे जो मन ने कहा
कवि होना आसान कहाँ।।
सब मोह माया छोड़ कर
निज बंधनों को तोड़ कर
कर के कंटकों का चयन
कर दूर जगती के तपन
प्रिय शब्दों से सिंचित बदन
तब भाव मन का है कहा
कवि होना आसान कहाँ।।
सींच अश्रुओं से क्यारियाँ
कर दूर सब दुश्वारियाँ
सोये जगत में जाग कर
निज मोह सारे त्याग कर
सत्य पथ पर रखते कदम
सींचा लेखनी से जहाँ
कवि होना आसान कहाँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04जून, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें