निज अलकों के बंधन खोलो।।

निज अलकों के बंधन खोलो।।

माथे पर भावों का चंदन
उर में भरकर मृदु स्पंदन
कुछ कहता सुन धीरे से मन
अपने आलिंगन में भर लो
निज अलकों के बंधन खोलो।।

सूरज का पथ मद्धम-मद्धम
साँझ निखरती पल-पल थम-थम
निज अंतस में भर भाव प्रथम
कुछ कह दो कुछ मन की सुन लो
निज अलकों के बंधन खोलो।।

प्राची से किरणों की माला
बारह घोड़ों के रथवाला
मुख पर भरकर भाव सुनहरे
जाते-जाते बोले सुन लो
निज अलकों के बंधन खोलो।।


तुम में मैं हूँ मुझमें तुम हो
आस-निरास पल में तुम हो
तुम ही जीवन की अभिलाषा
मृदु पल को पलकों में भर लो
निज अलकों के बंधन खोलो।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03जून, 2022

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