एक जैसी कामनायें
कह रही सुन भावनाएँ
गीत मन के गुनगुनाती
चाहती औ मुस्कुराती
मौन मन बस ये पुकारे
जोड़ मन के तार सारे।।
बादलों से नीर बरसा
फिर कहो क्यूँ गीत तरसा
भारी मन, क्यूँ दर्द गहरा
कैसा है अब दर्द ठहरा
तोड़ कुंठित बांध सारे
जोड़ मन के तारे सारे।।
एक तरह जब है जीवन
फिर कहो है मौन क्यूँ मन
क्यूँ नहीं यादें उभरतीं
क्यूँ नहीं ख़ुशियाँ ठहरती
आ चलें पनघट किनारे
जोड़ मन के तार सारे।।
कब तक भटकेगा यूँ ही
दर्द ले तरसेगा यूँ ही
आह मन की कब सुनेगा
कह यकीं कैसे करेगा
चल चलें मन के सहारे
जोड़ मन के तार सारे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04जून, 2022
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