मैं अब तक गीत न गा पाया।।
कुछ शब्द प्रखर हो कह डाले
मैंने मन के सूनेपन में
कुछ गीत मुखर हो रच डाले
मेरे उन गीतों को अब तक
कोई सद्भाव न मिल पाया
कहने को तो लिखे बहुत पर
मैं अब तक गीत न गा पाया।।
मैंने समझा साथ मिलेगा
जीवन के हर पथ पे मुझको
मैंने चाहा करूँ समर्पित
जीवन का हर पल मैं तुमको
लेकिन हाथों की रेखा में
मैं तुमको नहीं सजा पाया
कहने को तो लिखे बहुत पर
मैं अब तक गीत न गा पाया।।
मैंने अपने अंतर्मन के
भावों से श्रृंगार खिलाये
मैंने अपने हर गीतों में
सपनों के श्रृंगार सजाये
थे पलकों के तंग किनारे
मैं आँसू नहीं बहा पाया
कहने को तो लिखे बहुत पर
मैं अब तक गीत न गा पाया।।
कितने ही अवरोध मार्ग में
मैं कब तक मनन यहाँ करता
सूरज की ढलती किरणों में
मैं चिंतन कहो कहाँ करता
कुछ था कर्ज मेरे माथे पर
मैं जिसको नहीं चुका पाया
कहने को तो लिखे बहुत पर
मैं अब तक गीत न गा पाया।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30जून, 2022
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