मेरे नयनों का सूनापन अगर जो पढ़ लिया होता।
मेरे माथे की सिलवट को अगर जो पढ़ लिया होता
मेरे भावों की आहट को नजर में मढ़ लिया होता
नहीं घिरती कभी अफसोस की बदली इन हवाओं में
मेरे नयनों का सूनापन अगर जो पढ़ लिया होता।।
जो लफ्जों का सफर मुश्किल तो रस्ते छूट जाते हैं
कहे कोई यहाँ कुछ भी नजारे रूठ जाते हैं
नहीं बस दोष लहरों का किनारों की कुछ खता होगी
कि हल्की थाप लहरों की जो पाकर टूट जाते हैं।।
जी, चलो माना नहीं आता मुझे मिलना मिलाना कुछ
नहीं आता मुझे माना कि कहना कुछ सुनाना कुछ
मगर सब बात दिल में है अभी तक सालती तुमको
इशारों में सही कुछ तो नजर से गढ़ लिया होता।।
हुए हैं दूर अब हम तुम समय का दंश है शायद
कहीं मेरे तुम्हारे भाव का कुछ अंश है शायद
जब मचली नाव लहरों में किनारा कढ़ लिया होता
मेरे नयनों का सूनापन अगर जो पढ़ लिया होता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29जून, 2022
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