कितने सपने पलकों पर ले
रातों के हम साथ जगे
बनकर बाती हम दीपक की
उम्मीदों के साथ जगे
तुम बिन कैसे रोशन दुनिया
बात यहाँ समझा पाता
काश कभी मैं तुमसे मन की बात सभी वो कह पाता।।
मैंने अपने सूनेपन को
तेरी यादों पे वारा
जीत गया मैं सबसे लेकिन
अपने ही दिल से हारा
दिल से क्यूँ मजबूर हुआ
बात यहाँ बतला पाता
काश कभी मैं तुमसे मन की बात सभी वो कह पाता।।
अब तुम कितने दूर बसे हो
चाहूँ तो कैसे आऊँ
ऊँची-ऊँची दीवारें हैं
कैसे तुम तक पहुँचाऊँ
मुझसे तुमको घाव मिले जो
काश उसे सहला पाता
काश कभी मैं तुमसे मन की बात सभी वो कह पाता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30जून, 2022
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