जीवन के संधि-पत्र पर।
जीवन के उस संधिपत्र पर सच लिखना क्या भूल गये।।
कुछ पन्नों में नत्थी कर ली
सबने जीवन की गाथा
बिखरे-बिखरे कुछ पन्ने थे
बाँध नहीं पाया धागा
इक-इक पन्ने चुनने खातिर
रात-दिवस जीवन जागा
फिर भी जाने कितने पन्ने
जीवन पथ के छूट गये
जीवन के उस संधि-पत्र पर सच लिखना क्या भूल गये।।
कितनी सुधियों की खुशबू से
महक रहा जीवन अपना
कितने वादों की नरमी से
कितना कुछ हमको लिखना
पर इक आँधी के झोंके से
बिखरा पलकों का सपना
सपनों का कुछ दोष नहीं था
पलकों से क्यूँ टूट गये
जीवन के उस संधि-पत्र पर सच लिखना क्या भूल गये।।
इक पन्ने पर धुँधले चेहरे
पास कहीं परछाईं हैं
यादों के दीपक से मिलकर
अंतस में घिर आयीं हैं
यादें पलकों की बूँदों से
लगती कुछ घबराईं हैं
अधरों के वो गीत सभी अब
चुभते से क्यूँ शूल हुए
जीवन के उस संधि-पत्र पर सच लिखना जब भूल गये।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27जून, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें