कुछ कहीं ऐसा है अब भी
चुभ रहा बन शूल।
अंक में मेरे सिमटकर
पाश में मेरे लिपटकर
कंठ में थे गीत के स्वर
कुछ कहा उस रोज तुमने
याद है वो आज साथी या गये हो भूल
कुछ कहीं ऐसा है अब भी चुभ रहा बन शूल।।
मौन पल में कुछ कहा था
दर्द कितना ही सहा था
शब्द अधरों से झरे कुछ
अश्रु पलकों से गिरे कुछ
याद है वो अश्रुकण या फिर गये हो भूल
कुछ कहीं ऐसा है अब भी चुभ रहा बन शूल।।
अब कहाँ मैं तुम कहाँ पर
दूर हैं हम, मौन हैं स्वर
लिख रहा पर गीत तेरे
भाव मन के, प्रीत तेरे
याद है क्या गुनगुनाना या गये हो भूल
कुछ कहीं ऐसा है अब भी चुभ रहा बन शूल।।
दूर हूँ सब बंधनों से
स्नेह के अनुरंजनों से
है नहीं अफसोस कोई
रात पलकें पर न सोईं
याद अब भी जागना है या गये हो भूल
कुछ कहीं ऐसा है अब भी चुभ रहा बन शूल।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16 जून, 2022
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