1⃣
पग-पग चलता रहा निरंतर
पलकों में भर प्रेम समंदर
आती जाती साँसें पल-पल
भावों में कब करती अंतर
नयनों ने सब भाव सँभाले
आस-निराश के ओढ़ दुशाले
अधरों पर नवगीत सजाये
आहों में भी गीत सुनाये
मेरा गीत जगत को भाया
पर जाने क्या भूल हुई जो
पीड़ा ने मुझको अपनाया।।
2⃣
मैंने सुख में भाव सँभाले
दुख में सुख की राह निकाले
मीलों चलता रहा क्षितिज तक
कदमों से जीवन लिख डाले
कुछ भूलों ने ऐसा घेरा
सुख में दुख ने डाला डेरा
बदनामी की आँच लगी यूँ
बदल न पाया मन का फेरा
मन के भावों को समझाया
पर जाने क्या भूल हुई जो
पीड़ा ने मुझको अपनाया।।
3⃣
यादों का जब लिया सहारा
उस पर अपना सबकुछ वारा
जगती से क्या करूँ शिकायत
सब से जीता खुद से हारा
हार-जीत के चक्र में फँसकर
भूल गया जब जीना खुलकर
फिर क्या देता दोष किसी को
समझ नहीं पाया जब मिलकर
विधना ने सब खेल रचाया
पर जाने क्या भूल हुई जो
पीड़ा ने मुझको अपनाया।।
4⃣
उत्तर इतना सहज रहा कब
के जब चाहो तब मिल जाये
भावुकता के क्षण में हमने
संदेशे पल-पल भिजवाये
जिस पल तुमसे राह मिली थी
जीवन क्या तब हमने जाना
अंजुलि से जब समय गिरा तब
खोना क्या तब हमने जाना
खो कर भी पल-पल मुस्काया
पर जाने क्या भूल हुई जो
पीड़ा ने मुझको अपनाया।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15जून, 2022
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