है कुपथ क्या औ सुपथ क्या अब कौन बोलेगा भला।।

है कुपथ क्या औ सुपथ क्या
अब कौन बोलेगा भला।।

            1⃣
रात के उस पार देखो
भोर की उजली किरण है
बादलों के पार देखो
अवनि अंबर का मिलन है
हूँ जा रहा इस पंथ पर 
मैं अकेला गीत गाता
फिर कहो कोई यहां क्यूँ
आसमां सर पर उठाता
है सुगम या राह दुर्गम
अब कौन रोकेगा भला
है कुपथ क्या औ सुपथ क्या
अब कौन बोलेगा भला।।

            2⃣

राह कितनी मैं चला हूँ
और कितनी दूर जाना
मुश्किलें चाहे सफर में
सीखा केवल मुस्कुराना
शब्द लहरों से लिया हूँ
साहिलों से गीत गाना
आँधियाँ चाहे डगर में
दीप बनकर टिमटिमाना
दीप का व्यवहार बोलो
अब कौन समझेगा भला
है कुपथ क्या औ सुपथ क्या
अब कौन बोलेगा भला।।

               3⃣

क्या कठिन जीवन यहाँ पर
औ क्या है ये मृत्यु सरल
लगता जिंदगी के वास्ते 
सब पी रहे पल-पल गरल
हर किसी के अंक में है
उसका अपना आसमान
फिर नहीं पर्याप्त है क्यूँ
जो कुछ मिला सबको यहाँ
अब ये कसक दिन रात की 
क्या वक्त समझेगा भला
है कुपथ क्या औ सुपथ क्या
अब कौन बोलेगा भला।।

             4⃣
मौन रहकर इस सफर में
देखो चले कितने मगर
पार कितने पा सके हैं
हो ये डगर या वो डगर
ये नाव ही है जानती
वेग कितनी है लहर में
वो किनारे क्या करेंगे
दूर जो ठहरे सफर में
पतवार इन किश्तियों की
अब कौन पकड़ेगा भला
है कुपथ क्या औ सुपथ क्या
अब कौन बोलेगा भला।।

             5⃣

जब लिए संतोष मन में
चल पड़े मन के नगर में
क्यूँ यहाँ अफसोस करना
राह कैसी है नजर में
शब्द से उपचार कर के
दर्द को अपना बना लो
गीत में श्रृंगार भर के
स्वयं में ही गुनगुना लो
जब नहीं हो साथ कोई
बोलो शपथ क्यूँ ले भला
है कुपथ क्या औ सुपथ क्या
फिर कौन बोलेगा भला।।

©✍️ अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
        11जून, 2022

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