तू पूजता किसको बता।
मारीचिका मन प्राण ले तू सोचता किसको बता
कौन है इस पंथ में जो मोह से वंचित रहा हो
फिर भाव का आकाश ले तू पूजता किसको बता।।
कौन है जो इस जगत में भावनाओं से न हारा
और जीवन के सफर में वर्जनाओं का ना मारा
मुक्त कर आकाश अपना जाना कहाँ तुझको पता
फिर भाव का आकाश ले तू पूजता किसको बता।।
लिए असथाओं का कलश पंथ कितने हैं बुहारे
और चुनकर कंकरों को पंथ कितने हैं निखारे
जो था करम तुमने किया है क्या धरम तुझको पता
फिर भाव का आकाश ले तू पूजता किसको बता।।
आसनों पर बैठकर के ना सोचना खुद को बड़ा
है कौन वो जिसका यहाँ ना वक्त से पाला पड़ा
वक्त के इस खेल में जब तू ढूँढता अपना पता
फिर भाव का आकाश ले तू पूजता किसको बता।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12अक्टूबर, 2021
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