मिलन।

मिलन।   

मुदित मन प्रीत भरकर आई जब जब द्वार तिहारे
प्रेम की बाँछे खिली हैं भाव भर संध्या सकारे
साँस में सरगम सजी है अरु प्रीत हिय में है भरी
मुग्ध मन ये गा उठा पा कामनाओं के सहारे।।

जो नहीं मिलता सहारा गीत पूरे हो न पाते
बात रह जाती अधूरी और हम फिर मिल न पाते।।

स्नेह का अनुप्रास पाकर अधरों ने नर्तन किया है
भाव का अहसास पाकर शब्द ने चुंबन किया है
सब गीत नूतन सज गये अरु रागिनी बजने लगी
मृद मधुर मधुमास पाकर प्रेम आलिंगन किया है।।

जो न मिलते स्वर हमारे गीत पूरे हो न पाते
बात रह जाती अधूरी और हम फिर मिल न पाते।।

प्रीत का आकाश लेकर दो कदम हम भी चले तब
मौन पलकों ने इशारों में बात दिल की कहे जब
भाव कितने हैं खिले अरु प्रीत का आँगन खिला फिर
मुग्ध मन झूम गाया गीत अधरों पर सजे तब।।

जो न मिलते भाव को अर्थ गीत पूरे हो न पाते
बात रह जाती अधूरी और हम फिर मिल न पाते।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10अक्टूबर, 2021


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