वो तेरे खत।
कतरा कतरा ही सही मैं जिंदगी बसर कर लूँगा
कैसे कह दूँ के बेख़याली में जी रहा हूँ मैं
साँसों में बसे तेरे खत से मैं खबर कर लूँगा।।
वो जो तेरे खत हैं उन्हें सीने से लगा रखा है
उनकी खुशबू को अब भी साँसों में बसा रखा हूँ
यूँ तो इल्जाम सहे हमने जाने कितने लेकिन
तेरी यादों को अब भी सीने में सजा रखा है।।
कैसे कहोगी अब मुझसे कोई वास्ता ही नहीं
कैसे कहोगी मेरी जानिब अब रास्ता ही नहीं
कैसे झुठलाओगी चाहतें जो दबी हैं दिल में
दिल पे रख के हाथ जरा कह दो कि राब्ता ही नहीं।।
है ये मालूम मुझे के तुझको जरूरत है मेरी
दिल के किसी कोने में बसी अब भी चाहत मेरी
ये नजरें उठा के जरा इक बार कहो तो मुझसे
चला जाऊँगा जो कह दो नहीं है आदत मेरी।।
है मुझको मालूम के भरोसा अब भी बाकी है
चाहत की खुशबू और वो नशा अब भी बाकी है
तेरे खत से आ रही खुशबू बता रही है यही
कि तिरे दिल में मिरे दिल का पता अब भी बाकी है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09अक्टूबर, 2021
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