मैं आशा के गीत लिखूँगा।
घना अँधेरा चाहे जितना
भले निराशा पग पग में हो
भले पराजय द्वार खड़ी हो
या फिर बिखरा बिखरा पथ हो
बिखरा पथ कितना भटकाये
फिर भी अपनी जीत लिखूँगा
मैं आशा के गीत लिखूँगा।।
भले रात हो कितनी काली
घनी अमावस बन कर छाये
भले दामिनी तड़ तड़ तड़के
या घनघोर घटायें छायें
पंथ पटे हों बाधाओं से
नहीं रुका हूँ नहीं रुकूँगा
मैं आशा के गीत लिखूँगा।।
शत्रु कौन है मित्र कौन है
करना क्या है मुझे जानकर
बढ़ता हूँ कर्तव्य मार्ग पर
हार जीत को धर्म मानकर
मन के सारे अँधियारों को
बन कर दीपक दूर करूँगा
मैं आशा के गीत लिखूँगा।।
घोर विपत्ति के पल, चाहे
विकट विवशता राहें रोकें
अवरोधक हों चाहे जितने
या फिर पग पग कोई टोके
असफलता के कलि कपाल पर
आशाओं की जीत लिखूँगा
मैं आशा के गीत लिखूँगा।।
जीवन की मुश्किल राहों में
मैं पग पग हँसता जाऊँगा
दूर क्षितिज तक जाना है तो
परबत से भी टकराऊँगा
लहराऊँगा परबत परबत
सागर सागर प्रीत लिखूँगा
मैं आशा के गीत लिखूँगा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03सितंबर, 2021
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