हिंदी की अभिलाषा।

हिंदी की अभिलाषा।   

हिंदी ने कब ये चाहा है बस उसका ही सम्मान करो
लेकिन भाषा के झगड़े में इसका ना अपमान करो।।

हिंदी ऐसी भाषा है जो भारत के दिल में बसती है
जब सब भाषाएँ हँसती हैं तब जाकर ये भी हँसती है।।

था रहा क्रांति का दौर यहाँ जब हिंदी ही पहचान बनी
एक सूत्र में बाँधा भारत और क्रांति का आह्वान बनी।।

पग पग कितने कष्ट सहे हैं तब जाकर ये मुस्काई है
बँधी बेड़ियाँ जब टूटी हैं अधरों पर रौनक आयी है।।

रीति काल हो भक्ति काल हो सबने इसका गुणगान किया
छायावादी, आधुनिक काल कितने ही काव्य महान दिया।।

भारतेंदु, प्रेमचंद, जयशंकर, दिनकर जी का साथ मिला
अगणित राष्ट्रकवि कवियत्री की कलमों से इसका रूप खिला।।

वेद, पुराण, गीता, उपनिषद कितने ग्रंथ लिखे हिंदी में
तुलसी, कबीर, सूर, रसखान सबने मंत्र दिए हिंदी में।।

कितना कुछ पाया हिंदी से हिंदी से ही पहचान बनी
पर जाने क्यूँ अपने घर में यूँ लगता ये मेहमान बनी।।

हिंदी दिवस मनाने को क्यूँ तारीखों में बँध जाते हैं
ऐसा क्यूँ लगता है जैसे हम हिंदी से शरमाते हैं।।
 
बात समझना आवश्यक है बिन हिंदी कुछ पहचान नहीं
जिसकी अपनी भाषा ना हो दुनिया में उसका मान नहीं।।

चलो बनाएं ऐसा भारत सब भाषा को सम्मान मिले
लेकिन अपनी प्रिय हिंदी को हर हृदय में उचित स्थान मिले।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03सितंबर, 2021


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