नभ के सूने गलियारे में
कितने ही मौसम तरस गये
मन बेचैन रहा सावन में
सुधियों के बादल बरस गए।।
भावों ने इक राह चुनी थी
चले मगर ना जा पाए
मन ने कुछ नवगीत बुने थे
मिले मगर ना गा पाये
बिछड़े मन की पीर लिये हम
मिलने तक को तरस गये
मन बेचैन रहा सावन में
सुधियों के बादल बरस गये।।
ये जाने कैसी हवा चली
संशय के बादल गहराये
थमे पाँव कुछ दूर तलक जा
बदरंग कुहासे भरमाये
असमंजस के श्यामपट्ट पर
जो शब्द लिखे सब झुलस गये
मन बेचैन रहा सावन में
सुधियों के बादल बरस गये।।
रहे सँजोते बीते पल के
भूली बिसरी यादों को
पलकों बीच हम रहे छुपाए
कितनी ही बरसातों को
बरसातों में बूँद गिरी पर
भींगा मन ले तरस गए
मन बेचैन रहा सावन में
सुधियों के बादल बरस गए।।
अब कहें भाव क्या इस दिल के
बस मौन छुपाए बैठे हैं
कैसे कह दें अपने दिल में
क्या-क्या दर्द छुपाए बैठे हैं
लिए दर्द हम सन्नाटों का
आवाजों को तरस गए
मन बेचैन रहा सावन में
सुधियों के बादल बरस गए।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25सितंबर, 2021
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