प्रीत बनकर छा गए।

प्रीत बनकर छा गए।    

शब्द जो निकले हृदय से, गीत बनकर आ गए
और अधरों पर सजे जो, प्रीत बनकर छा गए।।

भाव दुल्हन से सजे हैं, चाँदनी इस रात में
गीत अधरों ने बुने हैं, प्यार की बारात में
रात की पावन छँटा में, प्रीत पुलकित हो रहे
श्रृंगार में डूबे सभी, गीत मुखरित हो रहे।

प्यार के उद्गार सारे, रीत बनकर आ गए
और अधरों पर सजे जो, प्रीत बनकर छा गए।।

स्वप्न पलकों पर सजे हैं, कामनाओं की तरह
और हिय में जा बसे हैं, भावनाओं की तरह
रूप की मंदाकिनी में, वेदनाएं घुल गयीं
ये जिस्म तो थे दो मगर, आतमायें मिल गयीं।

आतमाओं के मिलन के, गीत नभपर छा गए
और अधरों पर सजे जो, प्रीत बनकर छा गए।।

रागिनी का हाथ थामे, गीत नव रचते रहे
पंथ के कंटक सभी बन, जीत पथ सजते रहे
स्वप्न जब आकार पाया, अंक अपना भर लिया
अरु प्रीत के मृदु पंख से, रंग मन में भर लिया।

प्रीत का चुंबन मिला जब, रंग खुलकर आ गए
और अधरों पर सजे जो, प्रीत बनकर छा गए।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       27सितंबर, 2021

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