इस पर चलूँ उस पर चलूँ।।
तुम ही कहो किससे टलूँ
पंथ सारे मुक्त हैं अब
इस पर चलूँ उस पर चलूँ।।
है नहीं दुविधा मुझे तब
तुम साथ मेरे जब प्रिये
क्यूँ रुकूँ मैं राह में तब
हम साथ में हों जब प्रिये।।
फिर राह के कंटकों से
बोलो भला कैसे टलूँ
पंथ सारे मुक्त हैं अब
इस पर चलूँ उस पर चलूँ।।
जब रात का आँचल मधुर
वियोग की सोचूँ मैं क्यूँ
जिस घड़ी जीवन पले
बिछोह की सोचूँ मैं क्यूँ।।
पलकों में हो प्रभात जब
मैं स्वयं को फिर क्यूँ छलूँ
पंथ सारे मुक्त हैं अब
इस पर चलूँ उस पर चलूँ।।
जो है दुखों की भीड़ तो
सुखों का मेला यहाँ पर
है कौन सा जीव जिसने
कष्ट ना झेला यहाँ पर।।
मौन के उस पार सुख जब
संताप में फिर क्यूँ पलूँ
पंथ सारे मुक्त हैं अब
इस पर चलूँ उस पर चलूँ।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22सितंबर, 2021
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