चिंतन हर बार किया।
हमने चिंतन हर बार किया
अरु कितना कुछ अपनाने को
हमने जीवन हर बार जिया।।
क्या कभी मिलेगा उचित सहारा
नहीं कभी भी देखा हमने
देगा कोई साथ हमारा
नहीं कभी भी सोचा हमने।।
फिर भी जग को अपनाने को
कुछ समझौता हर बार किया
जीवन में स्वाद बचाने को
हमने चिंतन हर बार किया।।
कदम कदम पर घातें गहरी
घनी अँधेरी रातें पसरी
दूर भले था सूरज लेकिन
अपनी नजरें जाकर ठहरीं।।
नए उजाले खातिर हमने
रातों को भी स्वीकार किया
जीवन में स्वाद बचाने को
हमने चिंतन हर बार किया।।
आशाओं के बाग सजाओ
जीवन उपवन बन जाएगा
सपनों को साकार बनाओ
हिय मृदु मधुवन बन जायेगा।।
मधु का रस चखने की खातिर
काँटों को भी स्वीकार किया
जीवन में स्वाद बचाने को
हमने चिंतन हर बार किया।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18सितंबर, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें