नव प्रभात।

नव प्रभात।   

घोर निराशा के क्षण में भी
जीवन का प्रकाश देखा है
बादल के उस पार वहाँ पर
मैंने नव प्रभात देखा है।।

जीवन के झंझावत में मैं
जाने कितनी बार घिरा हूँ
कदम कदम चलने की खातिर
पथ में कितनी बार गिरा हूँ
जग के सारे झंझावत में
आशा अरु हुलास देखा है
बादल के उस पार वहाँ पर
मैंने नव प्रभात देखा है।।

सकुचित भावों से निकले जब
आशा को विस्तार मिला है
अरु जीवन में नव प्रभात के
भावों को संसार मिला है
पग पग जीवन में कितने ही
उल्लास मचलते देखा है
बादल के उस पार वहाँ पर
मैंने नव प्रभात देखा है

पग पग पथ भटकाने खातिर
घृणा द्वार पर आन खड़ी थी
अंतस को बहकाने खातिर
दुविधाएँ हर बार खड़ी थीं
दुविधाओं के पार निकल कर
हमने नव प्रभास देखा है
बादल के उस पार वहाँ पर
मैंने नव प्रभात देखा है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13सितंबर, 2021

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