मेरे मनमीत।

मेरे मनमीत।  

पलक निहारें अपलक जिसको
वो मेंरे मनमीत तुम्हीं हो।।

निज पलकों के स्वप्न सुनहरे
मैं जिसे समर्पित करता हूँ
मृदु हिय के सब भाव मनहरे
मैं जिस पर अर्पित करता हूँ
हृदय हुआ सम्मोहित जिससे
भावों की वो प्रीत तुम्हीं हो
पलक निहारें अपलक जिसको
वो मेरे मनमीत तुम्हीं हो।।

मृदुल कल्पना के पाँखों पर
दोनों दूर तलक जाएँगे
इक दूजे को पाने खातिर
परबत से भी टकराएंगे
जिसने मन में प्रीत जगाया
भावों का वो गीत तुम्हीं हो
पलक निहारें अपलक जिसको
वो मेरे मनमीत तुम्हीं हो।।

गंगा की पावन धारा सा
निरमल निश्छल जीवन अपना
कलियों सा सम्मोहन जिसमें
पुष्पित पुलकित उपवन अपना
जिसने मन उपवन महकाया
कलियों का वो रूप तुम्हीं हो
पलक निहारें अपलक जिसको
वो मेरे मनमीत तुम्हीं हो।।

रचें चलो हम गीत सुनहरा
जो नीरवता में भरे प्राण
सारा जग गुंजित हो जिससे
दे प्राणों को जो अकुल तान
भावों को जो मुखरित कर दे
जीवन का संगीत तुम्हीं हो
पलक निहारें अपलक जिसको
वो मेरे मनमीत तुम्हीं हो।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       12सितंबर, 2021

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