खुद का खुद से मेल।

खुद का खुद से मेल।  

मन का सूना अंधकार ले
कैसे तुम मिल पाओगे
अवसादों के बीच रहे तो
कैसे फिर चल पाओगे।।

कदम कदम पर चोटें कितनी
जाने कितनी आघातें 
कहीं घनेरे दुख के बादल
कहीं खुशी की बारातें
उलझे मन के फेर में कहीं
खुद से क्या मिल पाओगे
अवसादों के बीच रहे तो 
कैसे फिर चल पाओगे।।

हानि लाभ जीवन के पहलू
इक आता इक जाता है
पथ भूला जो इसमें पड़कर
चैन कहाँ फिर पाता है
हर्ष विषाद में पड़े कहीं तो
पथ में क्या चल पाओगे
अवसादों के बीच रहे तो
कैसे फिर चल पाओगे।।

पल पल बीत रहा है जीवन
कितने ही आकाश लिए
घट घट रीत रहा ये क्षण क्षण
मन में अगणित आस लिए
क्षण भंगुर इस जीवन में
रोक भला क्या पाओगे
अवसादों के बीच रहे तो
कैसे फिर चल पाओगे।।

क्षण भर को बादल ढँकने से
सूरज क्या छिप जाता है
मन के दरपन में देखा जो
खुद से वो मिल पाता है
खुद को यदि पहचान लिए तो
जग से फिर मिल पाओगे
अवसादों के बीच रहे तो
कैसे फिर चल पाओगे।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10सितंबर, 2021




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