मौन के सम्मान में हूँ।

मौन के सम्मान में हूँ।  

ये मत कहो के मुग्ध हूँ मैं
सच कहूँ तो ध्यान में हूँ
वक्त के संग संग बीतते
मौन के सम्मान में हूँ।।

जो तुम मुखर हो शब्द से
तो भाव से मैं भी मुखर
जो तुम प्रखर निर्माण से
तो कर्म से मैं भी प्रखर।।

तुमसे यहाँ किसने कहा के
मान के अभिमान में हूँ
वक्त के संग संग बीतते
मौन के सम्मान में हूँ।।

प्यार का आकार हूँ मैं
स्वप्न इक साकार हूँ मैं
पंक्तियों में हैं गढ़े जो
आस का संसार हूँ मैं।।

उस आस के आकाश का मैं
मौन इक अभियान में हूँ
वक्त के संग संग बीतते
मौन के सम्मान में हूँ।।

रात की किसको फिकर है
भोर पर अपनी नजर है
हूँ मुसाफिर चल रहा मैं
मंजिलों की ये डगर है।।

कुछ छूट ना जाये कहीं पर
हर कदम इस ध्यान में हूँ
वक्त के संग संग बीतते
मौन के सम्मान में हूँ।।

अब क्यूँ डरूँ मैं शाप से
इस शोक से संताप से
क्यूँ करूँ मैं व्यर्थ जीवन
अवसादों में विलाप से।।

छंदों में बँधा इक गीत हूँ
अरु उसी के गान में हूँ
वक्त के संग संग बीतते
मौन के सम्मान में हूँ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01सितंबर, 2021

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