फिर बरसो सावन बनकर।

फिर बरसो सावन बनकर।   

गलियाँ गलियाँ बस्ती बस्ती
मेरी अँखियाँ तुझे निहारें
रुकूँ कहीं मैं चलूँ कहीं भी
हर पग हर पथ तुझे पुकारे
अब आ जाओ इस जीवन में
फिर बरसो तुम सावन बनकर

रूत आये आकर चले गये
पलकों के सपने छले गए
कब तक पंथ निहारूँ ऐसे
सदियाँ हैं गुजरी मिले हुए
आ जाओ दरस दिखा जाओ
फिर बरसो तुम सावन बनकर।।

रात रात भर नैना जागें
ड्योढ़ी तकतीं पंथ बुहारें
इक तेरे मिलने की चाहत
पल पल नैना पंथ निहारें
अश्रू सही पलकों में बसकर
फिर बरसो तुम सावन बनकर।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10जुलाई, 2021


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