जब चोट लगी सब अपने थे।
जब चोट लगी सब अपने थे
दिल को क्या मालूम यहाँ था
जो सच समझा वो सपने थे।।
पल पल जीवन बीत रहा था
पग पग लेकिन बढ़ते कैसे
साथ छोड़ कर बीच राह में
मंजिल मंजिल चढ़ते कैसे
पर दिल को आघात लगा तब
जब टूटे सारे सपने थे
आज किसे हम व्यथा सुनाएँ
जब चोट लगी सब अपने थे।।
रात रात भर जाग जाग कर
तारों का साथ निभाया था
जले दीप के संग संग हम
अँधियारी राह सजाया था
बाती के साथ जले जितने
वो सारे मेरे सपने थे
आज किसे हम व्यथा सुनाएँ
जब चोट लगी सब अपने थे।।
आज खड़ा हूँ दोराहे पर
किसे भूलूँ किसे याद करूँ
जिससे मुझको घाव मिले है
कैसे उनसे फरियाद करूँ
जिन शब्दों से हृदय बिंधा है
सब कहने वाले अपने थे
आज किसे हम व्यथा सुनाएँ
जब चोट लगी सब अपने थे।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11जुलाई, 2021
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